लोग इस बात को लेकर आश्चर्यचकित होते हैं कि आखिर कैसे वानर राज सुग्रीव और उनकी वानर (Vanara) सेना के साथ मिलकर श्रीराम ने लंका पति रावण पर विजय प्राप्त कर ली। कुछ लोग इन सब बातों को मिथ्या भी मानते हैं। इसके अलावा कई लोगों का ऐसा मानना है कि, इस कथा में जिन वानरों और वानर सेना को उल्लेखित किया गया है वे बन्दर थे लेकिन ऐसा नहीं है। वानर और वानर सेना से जुड़ी इन बातों को जानने के बाद ऐसा मानने वालों के सारे भ्रम दूर हो जाएंगे।

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Historyरामायण काल के वानर नहीं थे बंदर, बल और...

रामायण काल के वानर नहीं थे बंदर, बल और पराक्रम के मामले में इन्सानों को भी देते थे मात

लोग इस बात को लेकर आश्चर्यचकित होते हैं कि आखिर कैसे वानर राज सुग्रीव और उनकी वानर (Vanara) सेना के साथ मिलकर श्रीराम ने लंका पति रावण पर विजय प्राप्त कर ली। कुछ लोग इन सब बातों को मिथ्या भी मानते हैं। इसके अलावा कई लोगों का ऐसा मानना है कि, इस कथा में जिन वानरों और वानर सेना को उल्लेखित किया गया है वे बन्दर थे लेकिन ऐसा नहीं है। वानर और वानर सेना से जुड़ी इन बातों को जानने के बाद ऐसा मानने वालों के सारे भ्रम दूर हो जाएंगे।

विज्ञान हमेशा से ही धर्म की कई बातों को नकारता रहा है और जो रहस्य विज्ञान की पकड़ में नहीं आ पाते उसे अंधविश्वास का नाम दे देता हैं। आज के समय में लोग जब रामायण (Ramayana) के युग को टीवी पर एक बार फिर से जीवंत होते देख रहे हैं तो उनके मन में कुछ प्रश्न उठना भी आम बात है। लोग इस बात को लेकर आश्चर्यचकित होते हैं कि आखिर कैसे वानर राज सुग्रीव और उनकी वानर (Vanara) सेना के साथ मिलकर श्रीराम ने लंका पति रावण पर विजय प्राप्त कर ली। कुछ लोग इन सब बातों को मिथ्या भी मानते हैं। लेकिन आपको बता दे कि रामायण (Ramayana) और महाभारत जैसी कथाएं पौराणिक कथाएं नहीं बल्कि एतिहासिक कथाएं हैं।

चलिए वानर सेना (vanara sena) और उनसे जुड़ी कुछ अहम जानकारी जान लेते हैं। इन बातों को जानने के बाद यकीनन आपकी वानरों से संबंधित सभी शंका दूर हो जाएगी-

1. आज के समय में ये समझा जाता है कि वानर एक प्रकार की बंदरों की ही प्रजाति है या फिर बंदरों को ही वानर समझ लिया जाता है। लेकिन वाल्मिकी जी ने रामायण (Ramayana) में कहीं भी ये बात नहीं लिखी की बंदर ही वानर है। वानर का मतलब है वन में रहने वाले नर। अर्थात जंगल में रहने वाले मनुष्य को वानर कहा जा सकता है।

2. आज से लगभग 2,30,000 साल वर्ष पहले रामायण (Ramayana) काल में किष्किंधा नगरी में वानरों का वर्चस्व हुआ करता था। आज के समय से मिलान किया जाए तो किष्किंधा कर्नाटक के हंपी शहर के पास बसा हुआ नगर था। दक्षिण भारत के अलावा थाइलैंड, म्यांमार, मलेशिया और इंडोनेशिया तक वानरों की पहुंच हुआ करती थी। और ये क्षेत्र पूरी तरह से वानरों के अधीन होते थे।

3. वानरों के कुछ अवशेष भी समय-समय पर मिलते रहे हैं, जो ये यकीन दिलाते हैं कि वे बंदरों से भिन्न हुआ करते थे और उनमें मानवों वाले गुण भी पाए जाते थे। वे इन्सानों की तरह चल और बोल सकते थे। इन प्रजाति को निएन्डरथल मानव (Neanderthal Men) कहा जाता है।

4. ये प्रजाति भारत के साथ-साथ अफ्रीका, यूरोप और पश्चिम एशिया के कई इलाकों में पाई जाती थी। कहा जाता है जब वानर राज सुग्रीव ने श्रीराम को मदद का वचन दिया तो समस्त विश्व से सभी वानर किष्किंधा नगरी पहुंच गए और इस प्रकार वानर सेना का गठन हुआ।

5. वानर और निएन्डरथल मेन में कई बाते समान देखने को मिलती है, जिनसे इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि निएन्डरथल मेन ही वानर हुआ करते थे। दोनों के ही माथे स्लोपिंग होते थे और पूरे शरीर पर घने बाल हुआ करते थे। हालांकि पूछ का मामला थोड़ा विवादास्पद नज़र आता है। लेकिन यहां यह बात सिद्ध हो सकती है कि पूछ में कोई हड्डी नहीं होती और वह मिट्टी में ही डिकंपोज़ हो गई।

6. वानरों के अंदर कुछ अंश बंदरों के भी हुआ करते थे। लेकिन उन्हें बंदर कहना पूर्णतः गलत होगा। वानर की सेना को कंपीकुंजरा कहा गया है, जिसका मतलब होता है हाथी समान विशालकाय बंदरों की सेना। वेदों में वानरों को नित्यम, चिता और अस्थरा कहा गया है जिसका मतलब होता है समय के अनुसार दिमाग में परिवर्तन होना। इसके अलावा कपिता और अनावस्थितम भी वानरो को कहा गया है, जिसका अर्थ है लगातार भ्रमण करना। इन दो बातों से साफ है कि वानर कभी एक जगह पर टिककर नहीं रहे और लगातार भ्रमण करते रहे हैं।

7. जैन धर्म में भी इस बात का खंडन किया गया है कि वानर वास्तव में बंदर थे। जैनागम के अनुसार किष्किंधा नगर के राजा का वानर वंश हुआ करता था। वे आम इन्सानों की तरह ही थे और केवल उनके वंश का नाम वानर था। वानर नाम के वंश के कारण ही ये कुप्रथा प्रसिद्ध हो गई कि वहां के लोग वानर जैसे दिखाई पड़ते थे। वंश के नाम से लोगों ने उनके चरित्र और शारीरिक रचना का अंदाजा लगा लिया और वही बाते पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही।

8. भगवान राम (Ramayana) के परम भक्त हनुमान वानर प्रजाति के अंतिम जीव थे। कहा जाता है कि उन्हें भगवान विष्णु से अमर होने का वरदान प्राप्त है और भगवान राम के अयोध्या लौटने के बाद वे वापस लंका के जंगलों में रहने चले गए थे। लंका पहुंचने पर एक कबिले के लोगों ने उनका आदर-सत्कार किया जिससे प्रसन्न होकर पवनपुत्र हनुमान ने उन लोगों को ब्रह्मज्ञान से अवगत कराया।

9. पवनपुत्र हनुमान हज़ारों वर्षों से लंका के जंगलों में ही रह रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि हनुमान आज भी प्रत्येक 41 वर्ष के बाद लंका के ‘मातंग’ जनसमुदाय लोगों से मिलने आते हैं। आखिरी बार हनुमान जी को 2014 में देखने की खबर आती है और बताया जा रहा है कि इसके बाद 2055 में वे एक बार फिर लंका के लोगों से मिलने के लिए आएंगे। हालांकि इस बात में कितनी सच्चाई है, इस बात की जाँच आज भी विज्ञान कर रहा है।

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Mohit Jain
I am an extrovert and an adventurous person who love to interact with public. Possessed by a wander soul, I like to explore new places and historical monuments. I dream for the future full of work, happiness, health and family. My pen is my strength and love to write on various topics. I believe in humanity.

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